डीजे बाजे, डंडा बाजे, बाज रहे इंसान – एन. डी. देहाती
बाज रहे इंसान.. साधो! झूठ ना बोलावें। झूठ बोले त कौआ ना, कुक्कुर काट ले, पागल., अवारा., सनकी.। मनबोध मास्टर आज सब कह दीहें अपने मन की। चारों तरफ बजनी-बजना के माहौल बा। बात कहां से शुरू कइल जा, इहे ना बुझात बा। पब्लिक बिजली खातिर बाजति बा। पुलिस के डंडा बाजत बा। पॉलिटिशयन श्रेय लूटे खातिर चंग बजावत हवें। पुलिस के लीला भी गजबे बा। अपने क्षेत्र की विधायक के ना पहिचानत हवें, अपराधिन के का पहिचनिहें? रहनुमा की गिरेवान में हाथ डाल सकेलन लेकिन कवनो रहजन के ना पकड़ सकेलन। शहर के पुलिस बबरुबाहन के सेना बन गइल बा। अट्ठारह दिन के महाभारत एके दिन में खत्म कइला में लागल हवें। सिंघड़िया में बिजली खातिर बवाल होखे, चाहे रुस्तमपुर में सड़क खातिर प्रदर्शन। तरंग क्रासिंग के मामला होखे चाहें हट्ठी माई थान के गणोश प्रतिमा विसर्जन। बबरुवाहन के सेना जनता के खूब सेवा कइलसि। जब-जब पुरुआ बही सेवा याद रही। एगो बात और बेबाक। चुनावन में कई रंग के झंडा लउकेला, बहुते नेता लउकेलन। मौजूदा वक्त में जनता परेशान बा त उ नेता लोग कवना कन्दरा में लुकाइल हवें? पब्लिक जहां-जहां पिटाति बा, बाबा-बाबा चिल्लाति बा। बाबा आवत हवें, बाबा धावत हवें। घाव पर मरहम लगावत हवें, प्रशासन के गरमावत हवें। जनता जयकार लगावति बा। सजो दर्द खत्म। सवाल इहो उठत बा कि विसर्जन चाहें विदाई त जुदाई के माहौल होला। भक्त लोग काहें डीजे बजावेलन? काहें डांस देखावेलन? काहें ज्यादा चढ़ावेलन? नर्सेज हास्टल चाहे महिला छात्रावास देखते जोश काहें दूना हो जाला? अइसन श्रद्धा की सहारे काहें भक्ति के श्राद्ध कइल जाता? येह बारे में कबो सोचल गइल? पूजा नेम-धरम के चीज रहल। नेम-धरम ताक पर रख के चंदाउगाही, पियक्कड़ई, नाच-गाना( भक्तिरस के ना, भोड़ा रस के) बढ़त जाता। इ के रोकी? धीरे-धीरे इहे परंपरा बनल जाता। प्रतिमा स्थलन पर बाजत लाउडस्पीकर से मंत्र, अराधना, भजन, प्रार्थना, आरती के स्वर कम सुनाई आ गंदा गीत के संगीत से पांडाल पवित्र होई त देवी-देवता कइसे प्रसन्न होइहन। जिला की बड़का साहब के एगो बात बहुत नीक लागल-˜ शहर की तीस-चालीस मूर्तियन के विसर्जन करावला में इ हाल बा त दुर्गापूजा में चार हजार प्रतिमा विसर्जन के स्थिति कइसे सम्हराई? बोल-बबरुबाहन। ना बोलब त सुन कविता
डीजे बाजे, डंडा बाजे, बाज रहे इंसान।
बांस की पुलुई कानून के लुग्गा, टांग करे घामासान।।
बिगड़ रहल कानून व्यवस्था, चहुंओर बस हुड़दंग।
पब्लिक-पुलिस-पॉलिटिशियन पीटें, आपन-आपन चंग।
– नर्वदेश्वर पाण्डेय (एन. डी. देहाती)