माँ
माँ है मेरी जग से निराली
माँ है मेरी जग से निराली
लट है उसकी घूँघराली
कानो मे लटकी उसकी बाली…।
माँ है मेरी जग से निराली
उसके हाथों मे है कुल्हाड़ी
फसलों मे वो डाले है पानी…।
माँ है मेरी जग से निराली
बच्चे को गोदी मे है संभाली
फिर भी सब देते है उसको गाली…।
माँ है मेरी जग से निराली
उसकी आँखों से बहता अश्रु पानी
न जाने कैसे सिमटी उसकी कहानी…।
माँ है मेरी जग से निराली
उसने हाथों से है थामी उँगली
मुझको लगती है वह बड़ी प्यारी…।
माँ है मेरी जग से निराली
वह संभाले चूल्हा चौका और थाली
अपने हाथों से बनाती भोजन तरकारी…।
माँ है मेरी जग से निराली
वो दिन रात करे है मैरी रखवाली
हर कोई समझे उसको नखरे वाली…।
माँ है मेरी जग से निराली
सब के बीच फिर भी रह जाती अकेली
उसके बिना न तो घर है न ही हवेली…।
– अन्जू परिहार