अभिनंदन हे अवध बिहारी

अभिनंदन हे अवध बिहारी, मेघवर्ण पीतांबर धारी,
स्वर्ण मुकुट मुक्तन की माला, दीप्त भाल है नयन विशाला,
पद पंकज की शोभा ऐसी, है जन-जन के ये हितकारी,
अभिनंदन हे अवध बिहारी ।।१।।
नारायण तुम नर तन धारे, भारत भू के भाग्य संवारे,
धन्य अवधपुरी धाम मनोहर, कर्मठ मन पर धर्म की मोहर,
सत्य सनातन सिद्ध हुआ है, भक्त वत्सल संतन सुखकारी,
अभिनंदन हे अवध बिहारी ।।२।।
मात पिता गुरु की आज्ञा से वन को चले जब रघुराई,
दोस्तों का संहार किया तब अतृप्त जनों को तृप्ति दिलाई,
मोह के बंधन में है यह मन कब यह मोह मिटे धनुर्धारी,
अभिनंदन हे अवध बिहारी ।।३।।
राजतिलक को रथ चढ़ आओ संग में रहे मां जानकी प्यारी,
चारों भाई संग हनुमत लाला दरबार की देखो शोभा न्यारी,
केसर तिलक पुष्पों की माला हाथ कोदंड महाशुभकारी,
अभिनंदन हे अवध बिहारी ।।४।।
दृश्य मनभावन, पुनीत पावन, हर्षित कण कण ,पुल्कित आंगन,
दसो दिशाएं झूम उठी है काशी मथुरा और वृंदावन,
दर्श दिखाकर विपदा हर लो मंगल भवन अमंगल हारी,
अभिनंदन हे अवध बिहारी ।।५।।
रामाय रामचंद्राय रामभद्राय में नमः
रघुवंशनाथ नथाय श्री सीतापतये नमः।।
अमित पाठक शाकद्वीपी
बोकारो, झारखंड