स्व० रामस्वरूप गुप्त – इतिहास के पन्नों में खोया हुआ एक अमूल्य स्वतंत्रता सेनानी

कुछ विरले व्यक्तित्व ऐसे होते है जो अपने पीछे देश तथा समाज सेवा का एक लम्बा स्वर्णिम इतिहास छोड़ जाते हैं परन्तु समय के साथ लोगों के स्मृति पटल से दूर हो जाते है। इनमें से एक व्यक्तित्व है एक छोटे से गांव में जन्में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं महान समाज सुधारक स्व० राम स्वरुप गुप्ता जी का।  स्व० गुप्त जी का जन्म नवम्बर 1906 में ग्राम रौकरी, परगना कम्पिल, तहसील कायमगंज, जनपद फर्रुखाबाद में हुआ था। 18 वर्ष का किशोरावस्था में आपके पिता स्व० हीरालाल का निधन हो गया था। अतः बचपन से ही आपको प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करना पड़ा था। प्रस्तुत घटना 1938 की रही होगी थाना कम्पिल, तह० कायमगंज पर जबरदस्त प्रदर्शन किया जा रहा था।  चारों ओर पुलिस लगी हुई थी तथा पुलिस द्वारा प्रत्येक पर तीव्र निगाह रखने का प्रयास किया जा रहा था। कारण भी स्पष्ट था उस समय किसी भी राष्ट्रीय नेता की जय बोलने , गाँधी टोपी धारण करने, नारेबाजी करने , आदि पर सख्त पाबन्दी थी। प्रदर्शन ने धीरे – धीरे जनसभा का रूप गृहण कर लिया था कम्पिल निवासी श्री रामशंकर (नेताजी) के अनुसार इस सभा में अचानक स्व० रामस्वरूप गुप्त जी ने बड़े जोर से महात्मा गाँधी की जय का नारा लगा दिया फलस्वरूप पुलिस ने चारों ओर से घेराबन्दी कर स्व० गुप्त जी को खोज करने का प्रयास किया परन्तु वह नारा लगाकर भूमिगत हो गये और एक वर्ष तक भूमिगत रहे। फलस्वरूप गिरफ्तार न होने पर दो बैल कुर्क कर लिये गये।  इन बैलों की सुपुर्दगी स्व० राधेलाल कौम वैश्य निवासी ग्राम रौकरी को दी गयी।

स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के समय स्व० गुप्त जी ने परगना कम्पिल के प्रत्येक गांव में जाकर जनजागरण किया। तिरंगा झण्डे के साथ जुलूस निकाला, गांव – गांव जाकर सभायें की, प्रभात फेरी निकाला तथा क्षेत्र के निवासियों को आजादी का महत्त्व बतलाया।  ग्राम बहवलपुर एवं भैसरी के निवासियों के अनुसार तत्कालीन जमींदार व्यंग रूप से कहते थे देखो लितटा हिलाकर, नारे लगाकर अंग्रेजों को हिन्दुस्तान से निकालेगा; लितटा हिलाकर आजादी लेगा।

मार्च 1941 में स्व० गुप्त जी को उनके निवास ग्राम रौकरी से थाना कम्पिल पुलिस ने गिरफ्तार किया। गिरफ्तार कर उन्हें ग्राम हज़रतगंज निवासी मुखिया पं० बादशाह की चौपाल पर ले जाया गया। पं० बादशाह के अनुसार दरोगा जी ने स्व० गुप्त जी से कहा था कि यदि आप लिखित माफ़ी मांग ले कि मैं ब्रिटिश शासन के खिलाफ आन्दोलन तथा जनजागरण नहीं करूँगा तो आपको छोड़ दूँगा। प्रत्योत्तर में स्व० गुप्त जी ने कहा था इस जालिम अंग्रेजी सरकार से माफ़ी नहीं मागूँ गा चाहे मुझे फाँसी भले ही हो जाये।

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स्वतंत्रता आन्दोलन में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सत्याग्रह/प्रोटेस्ट करते हुए तीन बार जेल गए –

प्रथम बार 10 मार्च 1941 को धारा 38 (5) के अन्तर्गत 6 माह की कठोर सजा तथा  रू० 20. 00 जुर्माना किया गया।

द्वितीय बार 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रीय भाग लेने के कारण 07 अक्टूबर 1942 को धारा 38 (5) DIR तथा 39 (6) DIR के तहत 2 वर्ष की कठोर सजा तथा  रू० 50.00 का जुर्माना किया गया।

तृतीय बार पुनः 13 अगस्त 1943 को धारा 38 (6) DIR तथा 39 (6) DIR के तहत 2 वर्ष की कठोर सजा तथा रू०  50.00 का जुर्माना किया गया।

स्व० गुप्त जी मेरापुर ( फर्रुखाबाद ) निवासी स्वतंत्रता सेनानी स्व० रामस्वरूप मिश्र के अभिन्न मित्र और सहयोगी रहे है। स्व० मिश्र जी की ससुराल ग्राम रौकरी में थी यहाँ वह प्रायः आते थे। मेरठ जनपद में हुई गोली काण्ड में स्व० मिश्र जी शहीद हुए थे वहाँ उनके साथ स्व० रामस्वरूप गुप्त जी भी मौजूद थे।       स्व० गुप्त जी के आमंत्रण पर स्व० श्रीमती उमा नेहरू बूढ़ी गंगा नदी पार आयीं थी। उनकी जनसभा ग्राम रौकरी तथा बहबलपुर में हुई थी।

स्वाधीनता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर आपके द्वारा किये गये स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने 15 अगस्त 1972 को ताम्र पत्र भेंट कर सम्मानित किया था। 

महान समाज सुधारक

आपने क्षेत्र के प्रचलित अन्धविश्वास एवं कुरीतियों, हरिजनों के उत्पीड़न तथा जमींदारों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठायी। आपने बूढ़ी गंगा नदी पार क्षेत्र के हरिजनों एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान हेतु अनेक कार्य किये। तत्कालीन जमींदार गरीब जनता एवं कृषकों का शोषण ही नहीं वरन् अभद्र व्यवहार भी करते थे। जमींदारों के इस अभद्र व्यवहार के कारण ही स्वाभिमानी स्व० गुप्त जी कभी भी अपनी भूमि का लगान देने उनके निवास स्थान पर नहीं गये वरन् मनीऑर्डर के द्वारा लगान प्रेषित करते थे तथा अन्य लोगों से भी ऐसा करने को प्रेरित किया। जब अंग्रेजी सरकार ने बढ़े हुये लगान को माफ़ कर दिया फिर भी जमींदार जब किसानों से लगान वसूलने लगे तो उसका स्व० गुप्त जी ने डटकर विरोध किया फलस्वरूप रू० 50/- देकर उस समय के स्थानीय बदमाश बनवारी ने स्व० गुप्त जी को जान से मार डालने हेतु सुपारी ली। इसी बदमाश ने बाद में लोगों को जानकारी दी की क्षेत्र का एक मात्र व्यक्ति इन जमींदारों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठा रहा है और मैं उसे जान से मार दूँ ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा यद्यपि मैं हाँ करके आया हूँ।

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जमींदारों के शोषण का दूसरा उदाहरण ग्राम शादनगर, तहसील कायमगंज है। शादनगर में श्री मिद्दू खाँ की जमींदारी थी। इनके कारिन्दें प्रति छमाही प्रति परिवार अढ़ाई सेर देशी घी, जो कुल मिलाकर छः टीन वार्षिक हो जाता था बेगार के रूप में लिया करते थे।  जब यहाँ के बाशिन्दों ने बेगार के सम्बन्ध में   स्व० गुप्त जी से फरियाद की तो उन्होंने शादनगर जाकर वहाँ के बाशिन्दों को एकत्र कर मीटिंग की और कहा आप बेगार के रूप में घी बिल्कुल न दे और निर्भीकतापूर्वक मना कर दे और कहें जब हम भूमि का लगान नियमित रूप से समय पर अदा करते है तो यह बेगार किस लिये प्रदान की जाय। स्व० गुप्त जी की बात का असर लोगों पर हुआ और उन्होंने बेगार के रूप में घी देना बन्द कर दिया। जब इस घटना का सूचना जमींदार मिद्दू खाँ तक पहुंची तो वह आग बबूला हो गये। श्री मिद्दू खाँ की भेट स्व० गुप्त जी से एक बार फतेहगढ़ (फर्रुखाबाद ) कचहरी के प्रांगण में हुई तो मिद्दू खाँ ने कहा कि गुप्ता तुमने मेरे आसामियों को भड़का दिया है , मैं वो पठान हूँ जो कचहरियों में गोली चलाता हूँ।प्रत्योत्तर में     स्व० गुप्त जी ने कहा कि मैं वह बनिया हूँ जो सीने पर गोली लेता हूँ, अगर हिम्मत है तो मार कर देखो। मैं हर शोषण के विरुद्ध बगावत करूँगा तथा हर जुल्म के विरुद्ध आवाज उठाऊँगा। उस समय उपस्थित लोगों के बीच बचाव से मामला शान्त हुआ। वहीं श्री मिद्दू खाँ बाद में कहने लगे कि गुप्ता तो मेरा जिगरी दोस्त है।

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सन् 1950 में स्व० गुप्त जी कायमगंज क्षेत्र से डिस्ट्रिक्ट बोर्ड फर्रुखाबाद सदस्य निर्वाचित हुये तथा 1963 तक अनवरत रूप से सदस्य रहे अपने परगना कम्पिल तथा बूढ़ी गंगा नदी पार के ग्रामीण अंचलों के उत्थान एवं विकास हेतु अथक प्रयास किये। आपने क्षेत्र में डिस्ट्रिक बोर्ड फर्रुखाबाद की ओर से 6 प्राइमरी स्कूल , एक कन्या पाठशाला, एक जूनियर हाई स्कूल , एक औषधालय तथा बूढ़ी गंगा नदी पर पुल के निर्माण हेतु प्रयास किया। ग्राम रौकरी में गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में 1950 में तीन दिवसीय (26 , 27 और 28 जनवरी )  मेला लगवाया जो 1960 तक अनवरत रूप से लगता रहा।

स्व० राम स्वरुप गुप्त जी फर्रुखाबाद के उन चन्द स्वतंत्रता सेनानियों में एक है जिनहोंने देश की स्वतंत्रता में स्मरणीय योगदान दिया है। 21 नवम्बर 1983 को आपका स्वर्गवास हो गया।

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