खानवा युद्ध: राणा सांगा की वीरता, बाबर की तोपों और बारूद के सामने लहराई तलवार

आगरा, 12 अप्रैल 2025: भारतीय इतिहास में मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह, जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपनी वीरता और साहस से युद्धक्षेत्र में अमरता हासिल की। 16 मार्च 1527 को खानवा के मैदान में बाबर की मुगल सेना और राणा सांगा के राजपूत गठबंधन के बीच हुआ युद्ध न केवल उत्तरी भारत की सत्ता के लिए निर्णायक था, बल्कि यह पहला अवसर भी था जब भारत में बारूद और तोपों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ। इस युद्ध में राणा सांगा ने अपनी एक आंख, एक हाथ और एक पैर खोने के बावजूद अदम्य साहस दिखाया, लेकिन बाबर की आधुनिक युद्ध तकनीक के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
खानवा का युद्ध (1527) भारतीय युद्धकला में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ। बाबर ने अपनी सेना को तोपों, मस्कट बंदूकों और बारूद से लैस किया था, जो उस समय उत्तर भारत के लिए पूरी तरह नई तकनीक थी। दूसरी ओर, राणा सांगा की सेना पारंपरिक हथियारों—तलवार, भाला और घुड़सवारी—पर निर्भर थी। बाबर ने अपनी रणनीति में तुलुघ्मा (फ्लैंकिंग) तकनीक और गाड़ियों से बनाए गए रक्षात्मक किलेबंदी का इस्तेमाल किया, जिसने राजपूतों की सीधी आक्रमण शैली को नाकाम कर दिया। इतिहासकारों के अनुसार, बाबर की तोपों ने न केवल शारीरिक, बल्कि मनोवैज्ञानिक नुकसान भी पहुंचाया, क्योंकि राजपूत घोड़े और सैनिक इस नए हथियार के धमाकों से भयभीत हो गए।
राणा सांगा एक ऐसे योद्धा थे जिनके शरीर पर युद्धों की गाथाएं लिखी थीं। कहा जाता है कि उनके शरीर पर 80 से ज्यादा घाव थे। 1517 में खटोली के युद्ध में उनकी एक बांह तलवार के वार से कट गई थी, और एक तीर ने उनके पैर को अपंग कर दिया था। पहले के युद्धों में उनकी एक आंख भी चली गई थी। इसके बावजूद, उन्होंने 18 बड़े युद्धों में दिल्ली, मालवा और गुजरात के सुल्तानों को हराया। बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में राणा सांगा को “हिंदुस्तान का सबसे महान राजा” कहा और उनकी वीरता की तारीफ की। खानवा युद्ध में भी राणा सांगा ने केंद्र से अपनी सेना का नेतृत्व किया, लेकिन एक तीर लगने से वह बेहोश हो गए और उन्हें युद्धक्षेत्र से सुरक्षित निकाला गया।
खानवा युद्ध में राणा सांगा की सेना शुरू में भारी पड़ रही थी, लेकिन सिल्हादी नामक उनके एक सहयोगी ने 30,000 सैनिकों के साथ युद्ध के बीच में बाबर का साथ दे दिया। इस विश्वासघात ने राजपूत सेना को कमजोर कर दिया। बाबर की तोपों और रणनीति ने बाकी काम पूरा किया। युद्ध में भारी नुकसान हुआ, और राणा सांगा की सेना को पीछे हटना पड़ा। इतिहासकार सतीश चंद्रा के अनुसार, अगर बाबर के पास तोपें न होतीं, तो राणा सांगा संभवतः ऐतिहासिक जीत हासिल कर लेते युद्ध के बाद राणा सांगा ने हार नहीं मानी। उन्होंने चित्तौड़ लौटने से पहले बाबर को हराने की कसम खाई और एक नई सेना तैयार करने लगे। लेकिन 1528 में कालपी में उनके कुछ सामंतों ने, जो बाबर से दोबारा युद्ध नहीं चाहते थे, उन्हें जहर दे दिया। इस तरह एक महान योद्धा का अंत हुआ। फिर भी, राणा सांगा की वीरता और राजपूत एकता की नींव ने मेवाड़ को प्रेरणा दी, जिसका असर महाराणा प्रताप तक देखा गया।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी के खिलाफ मदद के लिए बुलाया था, लेकिन बाबर ने इस सहमति का उल्लंघन किया। हालांकि, अन्य विद्वान जैसे गोपीनाथ शर्मा इस दावे को खारिज करते हैं और कहते हैं कि राणा सांगा ने लोदी को पहले ही खटोली और धौलपुर में हरा दिया था, इसलिए उन्हें बाबर की जरूरत नहीं थी। खानवा युद्ध ने न केवल बाबर की सत्ता को मजबूत किया, बल्कि भारतीय युद्धकला में बारूद के युग की शुरुआत भी की।