सर्पदंश जैसी जानलेवा घटना के प्रति सरकारें भी हो जागरूक

सर्पदंश जैसी जानलेवा घटना के सन्दर्भ में आज के समय देखा जाये तो सबसे बड़ा प्रश्न जो मुझे लगता है वो ये है कि आखिर लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ सरकारें भी खुद इस जानलेवा घटना के प्रति कब जागरूक होंगी जो कि हर साल हजारों लोगों की जिन्दगियाँ छीन लेती है?
भारत में आये साल 50 हजार से भी ज्यादा लोग सर्पदंश के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। बरसात के दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में सर्पदंश की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हो जाती है। सांप जलभराव वाले क्षेत्रों से सुरक्षित बचने के लिए हमारे घरों में घुस आते हैं और मानव का जीवन असुरक्षा में डाल देते हैं। सर्पदंश का वैज्ञानिक रूप से प्रामाणिक एकमात्र शोध आधारित उपचार एंटीवेनम है लेकिन आज सबसे विकट समस्या ये है कि हमारे देश के गांवों से सटे कई सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में एंटीवेनम की उपलब्धता ही नहीं है। सरकार ने कागजों पर निर्धारित कर दिया है कि प्रत्येक सरकारी अस्पतालों में एंटीवेनम चौबीस घंटे उपलब्ध होना चाहिए लेकिन व्यावहारिक जमीनी सच्चाई यही है कि ये एक दिशा-निर्देश मात्र बनकर रह गया है। यूपी, झारखंड, बिहार, राजस्थान, ओड़िशा आदि राज्य जहाँ कि सर्पदंश के चलते सबसे ज्यादा मौतें होतीं हैं वहां ग्रामीण इलाकों के अनेकों नजदीकी पीएचसी और सीएचसी जैसे सार्वजनिक अस्पतालों में एंटीवेनम की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। ऐसी मुश्किल घड़ी में यदि सर्पदंश से ग्रस्त व्यक्ति को शीघ्र हास्पिटल पहुंचा भी दिया जाये तो एंटीवेनम के अभाव में उसके पास अपने प्राण गंवाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। मेरे अपने प्रयागराज जनपद जो कि उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला जिला है अधिकांश सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में एंटीवेनम की मौजूदगी न के बराबर है।



हालांकि सर्पदंश के प्रति आज हमारे देश में जन-जागरूकता की बेहद कमी है। आज भी अधिकांश लोग सर्पदंश जैसी घटना घटित होने पर अस्पताल ना जाकर झाड़-फूंक और देशी इलाज में अपना बेशकीमती समय बर्बाद कर देते हैं जिसका दुःखद परिणाम ये होता है कि उचित उपचार के अभाव में पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। अधिकांश लोग एंटीवेनम के नाम से भी अपरिचित हैं। फिर भी यही प्रश्न खड़ा होता है कि सरकारें सर्पदंश जैसी घटना को गंभीरता से क्यों नहीं लेतीं? क्या सरकारें स्कूलों, कालेजों, गांव-देहात में सर्पदंश जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन नहीं करवा सकतीं हैं? आजादी के 75 वर्ष पूरे हो चुके इसके बावजूद आज तक जितनी भी केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारें देश में बनीं वो सर्पदंश जैसी संवेदनशील घटना के प्रति कभी भी गंभीर नहीं दिखी। कई सरकारी अस्पतालों में ना तो एंटीवेनम की उपलब्धता है और ना ही सर्पदंश का इलाज करने वाले कुशल प्रशिक्षित डाक्टर नियुक्त किये गये हैं।
करैत, कोबरा, रसेल वाइपर देश के अत्यंत विषैले सांप हैं जो कि सर्पदंश से होने वाली सर्वाधिक मौतों के लिए जिम्मेदार सांप हैं। मैं लगभग 8 सालों से सर्पदंश के खिलाफ मध्य प्रदेश के वन्यजीव विशेषज्ञ श्री ओमप्रसाद साहनी जी के साथ मिलकर मनुष्य की सर्पदंश से सुरक्षा और सांपो के संरक्षण हेतु प्रयत्नशील हूँ। झारखंड, मध्य प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों के अनेकों ग्रामीणवासी हमारे जागरूकता अभियान के चलते अब विषैले एवं विषहीन सांपो की पहचान करने में सक्षम हुए हैं। दोमुंहा सांप, धामन सांप जैसे विषहीन सांप जो कि चूहों का भक्षण कर किसानों की फसल सुरक्षा करते हैं उन्हें भी कई गांववासी कुछ वर्ष पहले अत्यंत विषैला सांप समझकर मार दिया करते थे लेकिन अब उनमें जागरूकता आयी है और वो इन किसान मित्र सर्पों का संरक्षण कर रहे हैं। फिर भी मेरा लम्बे अर्से का अनुभव यही बताता है कि हम सांपो को बचाने का उपदेश तो देते हैं किंतु सांपो के संरक्षण हेतु वास्तव में जो प्रयास किये जाने चाहिए उसमें हम नाकाम रहे हैं। हम सांपो की पारिस्थितिकीय तंत्र में भूमिका के बारे में लोगों को समझाते हैं लेकिन सांपो का संरक्षण तभी संभव हो सकता है जब सर्पदंश के खिलाफ एंटीवेनम गांव से सटे हर अस्पतालों में मौजूद हो। जब तक एंटीवेनम की मौजूदगी नहीं होगी लोग भय और असुरक्षा की स्थिति में सांपो की जान लेते रहेंगे। ये एक कटु सत्य व अनुभव है जिससे आप इन्कार नहीं कर सकते। जब किसी बीमारी का इलाज हमारे पास मौजूद हो जाता है तो हमारी चिंता और भय काफी हद तक समाप्त हो जाती है।



क्या आपने सोचा है कि आखिर सांपो के संरक्षण हेतु जन-जागरूकता अभियान क्यों असफल हो रहे हैं उसका कारण है सांपो के प्रति लोगों के दिलोदिमाग में बैठा डर जो कि अकारण नहीं बल्कि सहज और स्वाभाविक है। सर्पदंश के कारण कई गांववासियों को अपने परिवार के सदस्यों के साथ साथ मवेशियों को भी खोना पड़ जाता है। पशुपालन हमारे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार है और कई जहरीले सांपो के काटने से किसानों को अपने मवेशियों को खोना पड़ जाता है जो उनकी आर्थिक स्थिति को तबाह कर देता है। कई गांववासियों से यह पूंछने पर कि आखिर आप सांपो को इतनी निर्दयता पूर्वक क्यों मार देते हैं मुझे बेहद कड़वे जवाब मिले हैं। कोई गांववासी कहता है कि हम मजबूरी में मार देते हैं क्योंकि सांप द्वारा डसे जाने पर हमारी जान को खतरा है। इससे भी खरा जवाब मिलता है कि आप केवल सांपो के संरक्षण का उपदेश दे सकते हैं लेकिन गांवों में सर्पदंश जैसी चुनौती झेलने वाले व्यक्ति की पीड़ा नहीं समझ सकते। इन कटु लेकिन सत्य अनुभवों ने ये सोचने पर विवश कर दिया कि आखिर लोगों द्वारा सांपो की हत्या क्यों नहीं रूक रही? सर्प और मानव के बीच संघर्ष दैनन्दिन बढ़ता ही जा रहा है। सर्पदंश होने पर हमें शीघ्र अस्पताल जाना चाहिए इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन हमें अस्पतालों में उसके उपचार की भी व्यवस्था करनी चाहिए। गांव वासियों को चाहिए कि वो अपने स्थानीय क्षेत्र के एसडीएम आदि प्रशासनिक अधिकारी तथा विधायक व सांसद जैसे जनसेवकों से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में एंटीवेनम उपलब्ध कराने की मांग करें। सरकारें जब तक एंटीवेनम की व्यवस्था प्रत्येक गाँव के सरकारी अस्पतालों में नहीं कर देती तब तक ना तो सर्पदंश से मनुष्य की सुरक्षा संभव हो पायेगी और ना ही मनुष्य से सांपो की।
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हरेन्द्र श्रीवास्तव (वन्यजीव विशेषज्ञ)
कार्यक्षेत्र – सर्पदंश जागरूकता एवं सरीसृप संरक्षण हेतु करीब एक दशक से प्रतिबद्ध
पताः – जिला – प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

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