अगरबत्ती जैसी उदासी……

कल किसी मित्र का फोन आया कि डिप्रेशन में है। मैं हैरान था कि क्या हो गया ऐसा। कुछ बातें बताईं तो समझ आया कि कोई डिप्रेशन नहीं है बल्कि किसी घटना विशेष की वजह से उदास हो गया था। बस उदासी थोड़ी लंबी खिंच गई।
किसी ने कहा है कि उदासी देर तक रहती है। अगरबती की तरह महकती हुई। खुशी फुलझड़ी की मानिंद है। शायद गुलज़ार साहब ने। हालांकि मजरूह सुल्तानपुरी ने भी 1964 में कहा था- सुख है इक छांव ढलती आती है जाती है, दुःख तो अपना साथी है। यह फिल्म दोस्ती का गीत है। गीत से पहले कुछ ऐसा है-
दुख हो या सुख जब सदा संग रहे न कोई
फिर दुःख को अपनाइये के जाये तो दुःख न होए
इसका अर्थ हरगिज यह नहीं है कि दुःख को गले से लगा कर रखो। ये सामंजस्य बैठाने का मसला है। असल में ये डिप्रेशन शब्द आजकल फैशन की तरह हो गया है। छोटे बच्चे भी कहते हैं कि फलां बात से वह depressed है। हम यह नहीं कहते कि उदास हैं। कारण उदासी शब्द का खास वजन नहीं लगता। हालांकि शाब्दिक अर्थ पर जाएंगे तो एक जैसा ही मतलब निकलता है लेकिन ऐसा होता नहीं है। मन कई बार उदास हो जाता है लेकिन हमें हर उदासी से बाहर आने के लिए दवाओं की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
असल में हम सब आज बहुत तेजी से दौड़ रहे हैं। आगे आगे तमाम हसरतें दौड़ी जा रही हैं और उन्हें पकड़ने के लिए हम गिरते -पड़ते भाग रहे हैं। नतीजतन एक अवसाद हमें रात-दिन घेरे रहता है। यदि सब कुछ मन माफिक नहीं होता तो यह अवसाद गहराता चला जाता है। रोजमर्रा की छोटी मोटी बातें उसमें अलग से जुड़ती रहती हैं और हम मन के रोगी बन जाते हैं। ये उदासी से बहुत आगे की स्टेज है।
छोटी- मोटी उदासी हमारे जीवन का हिस्सा होती है। हम किसी भी बात पर उदास हो जाते हैं। यह अपना समय ले ही लेती है जाते-जाते। हां, उदासी को बहुत ज्यादा महकने मत दीजिए। अपने आसपास सकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश करनी चाहिए और क्रिएटिव रहना चाहिए। असल हंसी न सही तो पार्क में नकली हंसी ही हंस लो।
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हेमंत (फ़ेसबुक वाल से )