वक्फ बोर्ड की तर्ज पर हिंदुओं के लिए हिंदू बोर्ड क्यों नहीं?

केंद्र सरकार ने लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल 2024 पेश कर दिया है। सरकार का दावा है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों के कुशल प्रबंधन, पारदर्शिता और गरीब मुस्लिमों व महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए लाया गया है। लेकिन इस बिल ने एक बार फिर उस सवाल को जन्म दे दिया है जो लंबे समय से अनुत्तरित है- अगर वक्फ बोर्ड जैसा विशेष कानून एक धर्म के लिए हो सकता है, तो हिंदुओं के लिए हिंदू बोर्ड क्यों नहीं? यह सवाल न सिर्फ सोशल मीडिया पर छाया हुआ है, बल्कि आम लोगों के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है।
भारत में वक्फ बोर्ड दुनिया का सबसे बड़ा भूस्वामी है। सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद इसके पास 9.4 लाख एकड़ जमीन है। वक्फ अधिनियम 1995 इसे ऐसी शक्तियां देता है कि अगर बोर्ड किसी जमीन को अपनी संपत्ति घोषित कर दे, तो उसे सबूत देने की जरूरत नहीं। उल्टे, जिसकी जमीन पर दावा ठोका गया, उसे ही सबूत पेश करने पड़ते हैं। वक्फ ट्राइब्यूनल का फैसला अंतिम होता है और सेक्शन 85 के तहत इसे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती। तमिलनाडु, बेंगलुरु और सूरत जैसे इलाकों में मंदिरों और निजी संपत्तियों पर वक्फ के दावे इसका उदाहरण हैं।
दूसरी ओर, हिंदुओं के पास अपनी धार्मिक संपत्तियों की रक्षा के लिए कोई ऐसा कानून नहीं है। बड़े मंदिरों का प्रबंधन सरकार के हाथ में है और उनका धन भी सरकारी खजाने में जाता है। मंदिरों की जमीन पर अतिक्रमण आम बात है, लेकिन कोई विशेष बोर्ड या कानून इसकी रक्षा के लिए नहीं बनाया गया। मनवीर चंद कटोच, एक पूर्व बीएसएफ जवान और हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के निवासी, पूछते हैं, “जब वक्फ को इतनी शक्तियां दी जा सकती हैं, तो हिंदुओं के लिए हिंदू बोर्ड क्यों नहीं? क्या यह देश वाकई धर्मनिरपेक्ष है?”
वक्फ का इतिहास मुगल सल्तनत से जुड़ा है, लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी इसे मजबूत करने के लिए 1954, 1964, 1995 और 2013 में संशोधन किए गए। हर बार इसकी शक्तियां बढ़ाई गईं। वहीं, हिंदू राजाओं, महाराजाओं और गुरुओं ने धर्म और मातृभूमि के लिए जो बलिदान दिए, उनकी धार्मिक संपत्तियों को संरक्षित करने का कोई प्रयास नहीं हुआ। कटोच कहते हैं, “हिंदुओं ने कभी धर्मांतरण को बढ़ावा नहीं दिया, फिर भी धर्मांतरण को वैध बनाया गया। मुस्लिम पर्सनल लॉ को छुआ नहीं गया, लेकिन हिंदुओं की धार्मिक शिक्षा पर अंकुश लगाया गया। यह कहां का न्याय है?”
वक्फ संशोधन बिल में 14 बड़े बदलाव प्रस्तावित हैं, जैसे गैर-मुस्लिमों और महिलाओं को बोर्ड में शामिल करना और संपत्तियों पर जिला मजिस्ट्रेट की निगरानी। सरकार इसे सुधार बता रही है, लेकिन विपक्ष और मुस्लिम संगठन इसे धार्मिक हस्तक्षेप कहकर विरोध कर रहे हैं। इस बीच, हिंदू संगठनों और आम लोगों का सवाल है कि अगर एक धर्म को विशेष अधिकार मिल सकते हैं, तो बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए ऐसा क्यों नहीं? कटोच का तर्क है कि हिंदू बोर्ड के गठन से मंदिरों की संपत्ति की रक्षा, धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा और हिंदुओं के अधिकारों की सुरक्षा हो सकती है। उनका कहना है, “श्रीनगर और बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ जो हुआ, वह छिपा नहीं है। अगर यही हाल रहा तो भारत का इस्लामीकरण रोकना मुश्किल होगा।” वे यह भी कहते हैं कि तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति ने हिंदुओं को उनके ही देश में कमजोर कर दिया है।
लोकसभा में आज बिल पर चर्चा के दौरान हंगामे की आशंका है। एनडीए के पास बहुमत है, लेकिन विपक्ष इसे राज्यसभा में रोकने की कोशिश करेगा। इस बीच, हिंदू बोर्ड की मांग सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक पहुंच गई है। लोग पूछ रहे हैं- अगर भारत धर्मनिरपेक्ष है, तो यह असमानता क्यों?
यह सवाल अब सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बहस का हिस्सा बन चुका है। क्या सरकार इस पर विचार करेगी, या यह मांग भी अनसुनी रह जाएगी, यह वक्त बताएगा।
(लेखक: मनवीर चंद कटोच, एक्स बीएसएफ, गांव भवारना, पालमपुर, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश)