शरद पूर्णिमा: एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्व

शरद पूर्णिमा, जिसे “कोजागरी पूर्णिमा” भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। इस दिन का विशेष महत्त्व है क्योंकि इसे चंद्रमा और उसकी किरणों के औषधीय गुणों से जोड़कर देखा जाता है। शरद पूर्णिमा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर और वैज्ञानिक मान्यताओं से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।

धार्मिक महत्त्व

शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में होता है, और माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और उन लोगों को आशीर्वाद देती हैं जो रात भर जागकर उनका ध्यान और पूजन करते हैं। “कोजागरी” शब्द का अर्थ है “कौन जाग रहा है?” जो इस पर्व की महत्ता को दर्शाता है। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति इस रात को जागकर देवी लक्ष्मी की पूजा करता है, उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों की रासलीला से भी शरद पूर्णिमा का गहरा संबंध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ रास रचाया था, जिसे ‘महारास’ के रूप में जाना जाता है। इस रासलीला का विशेष महत्त्व है, जो प्रेम, भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व

शरद पूर्णिमा का पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस दिन खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। मान्यता है कि रातभर चंद्रमा की किरणों में रखने से खीर औषधीय गुणों से युक्त हो जाती है, और इसे अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

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इस दिन विशेष रूप से चांदनी रात का आनंद लिया जाता है, और लोग एकत्र होकर संगीत, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। कुछ स्थानों पर इस अवसर पर मेलों का भी आयोजन होता है, जहां लोग सामूहिक रूप से उत्सव मनाते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक पक्ष भी अत्यंत रोचक है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। चंद्रमा की किरणों में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है, जो शरीर के तापमान को संतुलित करती है और मानसिक शांति प्रदान करती है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन आसमान से धरती पर अमृत समान ऊर्जा गिरती है, जो स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए लाभकारी होती है।

शरद पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म और विज्ञान का एक संगम है। इस दिन का धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्त्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके हम अपनी आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति कर सकते हैं। यह पर्व हमें प्रेम, भक्ति, और सुख-समृद्धि की ओर अग्रसर करता है, साथ ही हमें यह भी याद दिलाता है कि जाग्रति और समर्पण से ही सच्ची प्रगति संभव है।

एम के पाण्डेय ‘निल्को’  (एक युवा आलोचक और स्वतंत्र पत्रकार हैं। उनका लेखन मुख्य रूप से हिंदी साहित्य के प्रति उनकी गहरी रुचि को दर्शाता है। पांडेय ने साहित्य, समाज और संस्कृति के विविध पहलुओं पर विचार करते हुए सामाजिक मुद्दों को उठाया है। उनकी लेखनी में न केवल विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण होता है, बल्कि यह पाठकों को विचार करने और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में प्रेरित करने का कार्य भी करती है। स्वतंत्र पत्रकारिता के क्षेत्र में, पांडेय ने निष्पक्षता और सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा है। उनके लेखन का उद्देश्य न केवल जानकारी प्रदान करना है, बल्कि समाज के लिए एक दर्पण का कार्य करना भी है, जिससे लोग अपनी जिम्मेदारियों को समझ सकें। उनकी सृजनात्मकता और चिंतनशीलता ने उन्हें एक महत्वपूर्ण युवा विचारक के रूप में स्थापित किया है।)

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