वैश्विक आर्थिक स्थिति, औद्योगिक संबंध व कुशल प्रबंधन

विश्व व्यापार संगठन का अनुमान है कि वैश्विक व्यापार में वृद्धि 2022 के 3.5 प्रतिशत के मुकाबले 2023 में 1.0 प्रतिशत के निम्न स्तर पर रहेगी। कोविड-19 के तीन लहरों तथा रूस-यूक्रेन संघर्ष के बावजूद एवं फेडरल रिजर्व के नेतृत्व में विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के केन्द्रीय बैंकों द्वारा महंगाई दर में कमी लाने की नीतियों के कारण अमेरिकी डॉलर में मजबूती दर्ज की गई है और आयात करने वाली अर्थव्यवस्थाओं का चालू खाता घाटा (सीएडी) बढ़ा है। दुनियाभर की एजेंसियों( संयुक्त राष्ट्र, वर्ल्ड बैंक और IMF) ने भारत को सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था माना है, जिसकी विकास दर वित्त वर्ष 2023 में 6.5 – 7.0 प्रतिशत रहेगी।

भारत सरकार ने ऎसी परिस्थिति को पहले से ही भांप लिया था और पिछले 2 सालों में जनता को देने वाली सहूलतों, और अन्य वरीयतावों में सख्ती बरती, जी एस टी दरों में भी बृद्धि की गई, प्रायवेटाइजेशन पर जोर दिया, अप्रैल (2022) के महीने में 21 बार डीजल-पेट्रोल के दामों में बढ़ोत्तरी हुई जबकि कच्चे तेल के दाम नहीं बढ़े. हम जिस भी भाव पर तेल खरीदते हैं, उसमें से लगभग 47 फीसदी तक टैक्स होता है. 106 रुपये पेट्रोल के दाम पर 49 रुपये सरकारी खजाने में जाता है जिससे सरकार और सरकारी कोष में गिरावट कम दिखी। संयुक्त राष्ट्र और IMF  की रिपोर्ट के अनुसार भारत 2024 में 6.7% की दर से विकास करेगा, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है।


वैश्विक अर्थव्यवस्था विशिष्ट चुनौतियों का सामना कर रही है अवध में एक कहावत है कि “न हव्वायक दौरउ न बाझिकै गिरो” जल्दबाजी या बिना सोचे समझे काम करने से नुकसान ही होता है। बांग्लादेश, श्री लंका और पाकिस्तान जैसी अर्थव्यवस्थाओं को  आर्थिक मंदी की बुरी मार झेलनी पड़ रही अंतरास्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)से वित्तीय सहायता लेनी पड़ी। है जिसकी वजह है जल्दबाजी व बिना सोचे समझे बड़े निर्णय लेना। यूरोप (यूरो डॉलर के मुकाबले 20 साल के सबसे निचले स्तर पर है), दुनिया की फैक्ट्री चीन भी कोरोना लॉक डॉउन और कर्ज की वजह से अर्थव्यवस्था धीमी हुई है और अमेरिका ( ऊंची व्याज दरें,6 मंहगाई,ऊंचे ऊर्जा दर)  सब की हालत खस्ता है और भारत फरवरी 2023 में G20 की लखनऊ में मेजबानी कर रहा है। मौजूदा सरकार पूंजीवाद और निजीकरण का खुल कर समर्थन व सहयोग कर रही है।

यदि देश के कुछ शीर्ष कंपनियों के कामकाज का विश्लेषण किया जाए तो पता चलेगा कि ज्यादातर कंपनियों के शीर्ष अधिकारी नेता, मंत्री और सरकारी अधिकारी के साथ गठजोड़ का फायदा उठा कर अपनी कंपनी का कारोबार और मुनाफा बढ़ाते है। उनका एकमात्र काम सरकारी ठेके व अन्य सरकार पोषित प्रोजेक्ट्स हासिल करना और कार्ययोजना व राष्ट्र हित दर किनार कर अभीष्ट फण्ड का  बंदर बांट करना, जोड़-तोड़ करके बैंकों से कर्ज लेना और प्राकृतिक संशाधनों पर कब्जा कर कमाई बढ़ाना है।

विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक बैठक में ऑक्सफैम इंटरनेशनल समूह द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार यह जानकारी भारत के पूंजीवाद की हकीकत यह है कि 2020 में भारत की कुल संपत्ति का 40 फीसदी हिस्सा देश के एक फीसदी लोगों के पास ही जो देश की आधी आबादी को मिलने वाला संपत्ति का 13 गुना है। पूरी दुनिया मे पिछले 25 वर्षों में पहली बार अत्यधिक धन और अत्यधिक गरीबी एक साथ बढ़ी है।  औद्योगिक संम्बंध की दरकार है कि औद्योगिक संगठन में कार्यरत सभी मानवीय समूह एक-दूसरे से सम्बन्धित हों एवं आपसी सहयोग से कार्य करें  जिस प्रकार औद्योगिक सम्बन्धों का अस्तित्व एक औद्योगिक संस्था अथवा संगठन के बिना भी सम्भव नहीं है । ऊसी प्रकार अधौगिक सम्बंध या कोई नियोक्ता (प्रबंधन या संस्था) का अस्तित्व श्रमिक वर्ग के अस्तित्व के बिना सम्भव नहीं है

स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व श्रमिकों को कभी भी काम पर लिया (Hired) जाता था और कभी भी निकाल (fired)दिया जाता था  जाता था क्योंकि न तो वे संगठित थे तथा न ही उनके संरक्षण के लिए कानून ही थे । सेवायोजक एक वर्चस्वकारी स्थिति में थे, कार्य परिस्थितियाँ निकृष्ट थीं तथा उनकी मजदूरी अत्यन्त नीची थी कर्मचारियों का कोई अधिकार और सम्मान नही था  प्रथम विश्व युद्ध के बाद औद्योगिक सम्बन्धों ने एक नया आयाम धारण किया जब श्रमिकों ने हिंसा का तथा सेवायोजकों ने तालेबन्दी (Lockouts) का सहारा लिया । 1928-29 के दौरान अनेक हड़ताल तथा दंगे एवं तोड़फोड़ देखने में आये । परिणामस्वरूप सरकार ने Trade Disputes Act, 1929 को लागू किया गया ताकि औद्योगिक विवादों के शीघ्र निपटान का बढ़ावा मिले ।  Trade Disputes Act, 1929 BIC Act से भिन्न था क्योंकि यह विवादों के निपटान हेतु किसी स्थायी तंत्र व्यवस्था की बात नहीं करता था । वैसे यह देखा गया कि न तो केन्द्रीय सरकार और न ही राज्य सरकार ने इस कानून का पर्याप्त उपयोग किया ।


1938 में, पहली बार विवादों के निपटान हेतु लागू की गई एक स्थायी तंत्र व्यवस्था जिसे Industrial Court कहा गया । परंपरागत रूप से, संघीय और राज्य स्तर पर भारत सरकार ने श्रमिकों के लिए उच्च स्तर की सुरक्षा और व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए भारतीय श्रम कानून बनाया गया।  न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अनुसार आवश्यक है कि कंपनियां काम के सप्ताहों को 40 घंटे तक सीमित करने के साथ-साथ सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन का भुगतान करें और मैटरनिटी बेनीफिट एक्ट (मातृत्व लाभ) (संशोधन) अधिनियम, 2017 के अंतर्गत प्रत्येक कंपनी की महिला कर्मचारियों को 6 महीने का पूर्ण भुगतान मातृत्व अवकाश लेने का अधिकार देता है।  आदि तमाम कानूनों और संशोधनो के बावजूद भी कर्मचारियों में जागरूकता की कमी और बेरोजगारी की वजह से कर्मचारियों की स्थिति और औधोगिक संबंधों में कोई बेहतर सुधार नजर नही आ रहा है। अनपेड ओवरटाइम, छुट्टियों में कमी और दुर्व्यवहार आज कम्पनियों में बहुत आम बात है कर्मचारी अपने स्वाभिमान को ताक पर रख कर समाज और परिवार से कट रोज के 10-12 घन्टे कम्पनी में काम करता है। श्रमिक वर्ग (कर्मचारी)औद्योगिक तनावों के बीच अपना जीवन व्यतीत कर रहा है, अपने अधिकारों, आत्म-सम्मान एवं गौरव को प्राप्त करने के लिए वह पूँजीपति, सेवायोजकों से सघर्ष कर रहा है । इसलिए वर्तमान युग में अधिक औद्योगिक संघर्ष दिखाई देते हैं ।

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इन सब समस्याओं का समाधान मधुर औद्योगिक सम्बन्धों के द्वारा ही किया जा सकता है ।  किसान की भांति एक नियोक्ता भी पहले बीज रूपी इन्वेस्टमेंट करना है फिर कई महीनों या वर्षों में बीज एक पौध  बनकर फल देता है जिसे श्रमिक अपने श्रम रूपी पसीनो से सींचता और जुताई गुड़ाई करते रहता है और नियोक्ता मसीनरी व अन्य खर्च रूपी खाद लगाता रहता है। जैसे लीडर बनने से पहले फोलोवर बनना होता है वैसे ही एम्प्लोयर बनने से एम्प्लोयी(कर्मचारी)  बनना होता है जिस् से आप एक कर्मचारी की दृष्टिकोण से अपने एम्प्लोयी की आवश्यकताओं को जान सकें कमियां भी देख सकें और काबिलियत भी एक कर्मचारी क्म्पनी को अपना कहता है, कंम्पनी के काम को अपनी जिम्मेदारी समझता है। कम्पनी और एम्प्लॉयर के सपने को अपना सापना समझ कर पुरा करता है। नियोक्ता या प्रबन्धन की जिम्मेदारी है कि समय समय पर कर्मचारी को सहयोग और प्रेरणा देकर उसके इस अपनेपन और विश्वास को बनाये रखे।

कर्मचारी कम्पनी के लिए काम करता है अपने बॉस या सीनियर्स के लिए नहीं।  हमारे गाँव की कहावत “थूक लगायके मुसरी जियावय” वाली बात है महँगाई बढ़ रही है इस स्तर पर वेतन नहीं बढाती कम्पनियां। अनावश्यक अनावश्यक दबाव व तनाव अलग से देती हैं कुछ बेहतर की आश से व्यक्ति दूसरी कम्पनी में जाता है कुछ महीनों बाद वहां भी यही दबाव व तनाव मिलना शुरू तंग हार कर व्यक्ति इसे अपने काम और जीवन का हिस्सा मानकर समझौता कर लेता है और कुछ कामचोरी, बेईमानी, भ्रष्टाचार और ऊपरी कमाई में संलिप्त हो जाता है अनंतः इस से व्यक्ति और संस्था दोनों का नुकसान होता है साथ साथ समाज, उपभोक्ता, शेरहोल्डर्स और सरकार तक भी प्रभावित होते हैं।

आई आई एम अहमदाबाद और जॉब सर्च कम्पनी मास्टर इंडिया की 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र जैसे ऑटो मोबाइल,मेटल्स, सीमेंट, फार्मा, केमिकल्स  और  इलेक्ट्रिकल मसीनरी से जुड़ी नौकरियों में बहुत कम बेतन मिलता है  भारत मे पिछले 1 दशक में 85-90 स्टार्टअप यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो चुके हैं। जबकि सिर्फ 2021 में 42 स्टार्टअप्स यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हुए हैं। देश में प्रतिवर्ष अरबपति की संख्या बढ़ रही है वर्ष 2020 से 2022 तक 65 नये अरबपति बने। देश की 40 प्रतिशत संपत्ति सिर्फ 1 प्रतिशत अमीर लोगों के पास है उत्पादन, मार्केटिंग, सेल्स और डिलेवरी सब के लिए श्रमिकों का सहयोग आवश्यक है । इस प्रकार स्पष्ट है कि संस्था की कार्यकुशलता एवं सफलता के लिए मधुर औद्योगिक सम्बन्ध अत्यन्त आवश्यक हैं ।

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किसी भी क्रिया को सफल बनाने के लिए श्रमिकों की समस्या को समझना चाहिए । कर्मचारियों को नियोक्ता से वेतन और अन्य सुविधाओं के साथ साथ  अपने पद पर बने रहने की सुरक्षा चाहता है(जॉब सिकुरिटी) साथ साथ प्रतिवर्ष कुछ बढ़ोतरी और पदोन्नति (इन्क्रीमेंट और प्रोमोशन)के अवसर मिलते रहना चाहिए जो उसकी ग्रोथ को रिप्रेजेंटे करता है। उसके मेहनत और आत्मसम्मान के सम्मान  की भी उम्मीद रखता है। काम करते हुए कर्मचारी अपने सामाजिक स्तर को ऊपर उठा सके और परिवार व अन्य निजी सम्बन्धो को भी पर्याप्त समय दे सके इस बात को भी नियोक्ता को ध्यान रखना चाहिए। एक कर्मचारी की जिम्मेदारी है कि वो कंपनी की गुडविल (साख) और विकास का सदैव ध्यान रखे किसी संगठन के लिए अपने कर्मचारियों की पेशेवर प्रतिष्ठा या सम्मान का निर्माण करना महत्वपूर्ण है। उच्च आत्मसम्मान वाले कर्मचारी अधिक उत्पादक, प्रतिबद्ध और अधिक प्रेरित होते हैं । उनके अन्य सहकर्मियों के साथ अधिक उत्पादक संबंध हैं और आलोचना को शालीनता से स्वीकार करने में सक्षम हैं होते हैं। प्रत्येक कर्मचारी अपने आत्मविश्वास के लिए पदोन्नति के अवसर भी चाहते हैं । किसी संगठन के लिए अपने कर्मचारियों की पेशेवर प्रतिष्ठा या सम्मान का निर्माण करना महत्वपूर्ण है। उच्च आत्मसम्मान वाले कर्मचारी अधिक उत्पादक, प्रतिबद्ध और अधिक प्रेरित होते हैं । उनके अन्य सहकर्मियों के साथ अधिक उत्पादक संबंध हैं और आलोचना को शालीनता से स्वीकार करने में सक्षम हैं।


नियोक्ता और कर्मचारी के परस्पर संबंध और अच्छे प्रबंधन के  लिए वर्ष 1960 में, डगलस मैकग्रेगर ने थ्योरी X और थ्योरी Y तैयार की, जो काम पर मानव व्यवहार के दो पहलुओं का सुझाव देती है, या दूसरे शब्दों में, व्यक्तियों (कर्मचारियों) के दो अलग-अलग विचार हैं: जिनमें से एक नकारात्मक है, जिसे थ्योरी एक्स(X) कहा जाता है और दूसरा धनात्मक है, जिसे थ्योरी वाई (Y)कहा जाता है थेओरी  X में बताया गया है कि एम्प्लॉयर(प्रबंधन) कर्मचारियों के प्रति नकारात्मक नजरिया रखते हैं जैसे कर्मचारी काम नहीं करना चाहते और मौका मिलते ही कामचोरी करते हैं। जिस से उसे कम्पनी के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मजबूर करना चाहिए, या सजा और  चेतावनी दी जानी चाहिए।  प्रबंधकों की ओर से कड़ी निगरानी की आवश्यकता है।  कई कर्मचारी नौकरी की सुरक्षा को शीर्ष पर रखते हैं, जबकि काम करने की महत्वाकांक्षा नहीं होती कर्मचारी बदलाव का विरोध करते हैं जैसे ट्रांसफर, जॉब रोटेशन और नये चुनौतियां लेने से बचते हैं। जबकि थ्योरी Y प्रबंधन का कर्मचारियों के प्रति सकारात्मक नजरिया दर्शाती है। मैकग्रेगर थ्योरी वाई को थ्योरी एक्स की तुलना में अधिक वैध और उचित मानते हैं। इस प्रकार, उन्होंने सौहार्दपूर्ण टीम संबंधों, जिम्मेदार और उत्तेजक नौकरियों और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी की भागीदारी को प्रोत्साहित किया। मेरे हिसाब से भारतीय कम्पनियों में जापानीज और अमेरिकन दोनों राष्ट्र के प्रबंधन प्रैक्टिस की झलक देखने को मिलती है।

जापानी जड़ों वाले अमेरिकी नागरिक विलियम आउची ने जापान के कम्पनी-प्रबंधन को समझाते हुए 1981 में एक किताब लिखी- थ्योरी ज़ेड: हाउ अमेरिकन बिज़नेस कैन मीट द जैपनीज़ चैलेंज’। थ्योरी ज़ेड बताती है कि इंसान को सिर्फ़ आर्थिक तरक़्क़ी की चाह नहीं होती। उसे सुरक्षा, संरक्षण, प्रोत्साहन और जुड़ाव की दरकार भी होती है। इंसानों से बनने के नाते कार्यस्थल/ कम्पनियां भी मानवीय प्रवृत्तियों से युक्त होती हैं, इसलिए सिर्फ़ पद और पैसा ही पर्याप्त प्रेरणा नहीं दे सकते। इसमें जापानी कम्पनियों की कार्यप्रणाली और प्रबंधन नीति को थ्योरी ज़ेड नाम दिया गया। कुछ लोग ज़ेड को ज़ील से जोड़ते हैं, जिसके उमंग, उत्साह, तत्परता, जोश जैसे अर्थ होते हैं।

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थ्योरी जेड की खास बातें…

  • विलियम आउची के अनुसार, थ्योरी ज़ेड का पहला गुण है- सामूहिक निर्णय प्रक्रिया। यानी फ़ैसले ऊपर से थोपे नहीं जाते, उनमें हर स्तर की सहभागिता और सहमति होती है। इससे कर्मचारी ख़ुद को संगठन का हिस्सा समझता है।
  • ज़ेड का दूसरा पहलू है, दीर्घकालिक रोज़गार। कर्मचारी को जॉब गारंटी मिलती है, जो उसे संगठन के प्रति प्रतिबद्धता रखने और सम्पूर्ण क्षमता से काम करने की प्रेरणा देती है।
  • सारी दुनिया में जहां विशेषज्ञता पर ज़ोर दिया जाता है, वहीं जापान में कर्मचारियों की भूमिकाएं बदलती रहती हैं। इससे उसे कामकाज के सभी पहलुओं को समझने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही वह अपनी रुचि और प्रवृत्ति के एक-दो कामों में विशेषज्ञ भी होता है।
  • प्रशिक्षण पर फ़ोकस थ्योरी ज़ेड की एक अन्य विशेषता है। प्रशिक्षण से कर्मचारियों की प्रतिभा निखरती है। जिसका लाभ अंतत: कम्पनी को मिलता है।
  • थ्योरी ज़ेड का कहना है कि कम्पनी और कर्मचारी का नाता सिर्फ़ आठ घंटों का नहीं होता (हालांकि 9-10 घन्टे काम करते हैं कर्मचारी आजकल)। कम्पनी को उसकी निजी ज़िंदगी की परवाह भी करनी चाहिए। किसी भी देश की सामूहिक व्यवस्थाएं वहां के व्यक्तिगत जीवन मूल्यों का प्रतिबिम्ब होती हैं। जापान के कम्पनी कल्चर में वहां के अनुशासन, पारिवारिक जुड़ाव, आपसी परवाह, प्रतिबद्धता और ज़िम्मेदारी की झलक मिलती हैं।

हालांकि ज़ेड थेओरी अति महत्वाकांक्षी लोग जो तेजी से प्रगति चाहते हैं, पर लागू नहीं होती क्यों थ्योरी जेड जापानी प्रबंधन प्रथाओं पर आधारित है। इन प्रथाओं को जापान की अनूठी संस्कृति से विकसित किया गया है।इसलिए, सिद्धांत विभिन्न संस्कृतियों में लागू नहीं हो सकता है। भारत जैसे विविधताओं वाले देश मे लोगों की आदतें और मेंटेलिटी बहुत अलग अलग है। भारत मे ज्यादातर संगठनों द्वारा विलियम आवुची की जेड(Z) और मैक ग्रेगर की वाई (Y) थेओरी की अवधारणावों का अनुसरण करती हैं और कुछ संगठन थेओरी वाई (Y) की अवधारणावों पर चलते हैं नियोक्ता(प्रबंधन) हर स्थिति में अपने संगठन के विकास के लिए कर्मचारी के वेतन के साथ साथ अन्य प्रभावित करने वाले पहलुओं (सुविधाओं) जैसे कर्मचारियों की जॉब सिकुरिटी, आत्म सम्मान, सामाजिक स्तर, बढ़ोतरी और पदोन्नति आदि का ध्यान रखना आवश्यक है और कर्मचारियों को  वर्किंग ऑवर्स में सम्पूर्णता से कार्य करना चाहिए और  कंपनी के विकास और उसके गुडविल को बनाये रखने के लिए भरसक प्रयासरत्त रहना चाहिए।

एक अच्छा प्रबंधक एक अच्छा नेता (नेतृत्व) होता है और उद्देश्य निर्धारित और परिभाषित करने सही जगह पर सही व्यक्ति को सही समय पर लगाता है और संयुक्त लक्ष्य को पूरा करने के लिए कार्यबल को प्रभावित और प्रेरित कर एक सकारात्मक और स्वस्थ ऑर्गनाइज़ेशनल कल्चर स्थापित करता है। एक अच्छा प्रबंधक व प्रबंधन सुधार के लिए प्रयासरत रहता है और टीम सदस्यों के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखता है समय समय पर प्रेरित करता रहता है और ख्याल रखता है जिसके कर्मचारी व टीम की उत्पादकता बढ़ती है और कर्मचारी भी कंपनी के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखता और अपना शतप्रतिशत देकर कम्पनी के हर उद्दश्यों को सम्पूर्ण करता है

 

श्याम नन्दन पाण्डेय

मनकापुर, गोण्डा (उ.प्र.)

मोबाइल-8005421381

 


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