गुलजार खुद एक नगमा है

सम्पूर्ण सिंह कालरा नाम से शायद कोई परिचित ना हो पर गुलजार ऐसा नाम है जिससे शायद ही कोई अपरिचित हो। किशोर ,युवा, वयस्क, वृद्ध ,महिला हो या पुरुष हर कोई उनकी लेखनी का दीवाना है ।पिछले पाच दशक से वो लोगो के अधरो पर आसन जमाये,बैठे है और इस तरह करोड़ो गीत प्रेमियों का दिन गुलजार से ही आरम्भ होता है और शाम भी उनके नगमो को सुनते हुए सुहानी होती जाती है ।
 पाकिस्तान मे झेलम के किनारे जन्म लेने वाले सम्पूर्ण सिंह कालरा बचपन मे ही अपनी जन्म स्थली और जननी को खोकर मुंबई आकर मैकेनिक का कार्य करते अपने अंदर के शब्द साधक को पहचान खोज, निखारने का काम करते रहे। जब फिल्म ” बंदिनी ” के लिए  पहला गीत ” मोरा गोरा अंग लेइ ले ” लिखा तो अंदर छिपी अपार संभावना से फिल्मकार और श्रोताओ को रूबरू करा दिया। किसी के पास महकती सुगंध हो तो कद्रदान स्वतः ही खिंचे चले आते है। गुलजार के पास शब्दो को वो कशिश है कि हर स्तर का जनमानस आकर्षित हुए बिना नही रह सकता। “आनंद” से लेकर “माचिस” तक और “मासूम ” से लेकर “साथिया” तक उनके लिखे गीत हो या कहानी, पटकथा हो या निर्देशन फिल्म सम्पूर्ण न्याय के साथ दर्शको के सम्मुख आई है। मात्र पैंतीस की उम्र मे भटके नौजवान को राह दिखाती उनकी निर्देशित पहली फिल्म “मेरे अपने”  और फिर पच्चीस बरस बाद “माचिस ” गहरा प्रभाव दर्शको पर छोडती है। “आंधी” के संवाद और गीत कालजयी है। व्यवसायिक जीवन मे प्रगति और महत्वकांक्षा के बीच प्रेम की गहराई की इतनी खूबसूरत बयांनगी गुलजार के सिवा शायद ही कोई और कर पाए। उनके द्वारा निर्देशित फिल्मे “मौसम”, “परिचय” , ” नमकिन”, ” अंगूर “, “लेकिन”  “इजाजत” हर मिजाज की हल्की फुल्की आनंदित करने वाली है जो किसी भी समय और कितनी भी देखी जाए तो एक खुशनुमा अहसास कराती है। गुलजार अब एक ऐसा नाम बन चुका है जिसको सिर्फ गीतकार या फिल्मकार की श्रेणी मे बांध कर नही रखा जा सकता है। उनकी सोच का कैनवास इतना वृहद है कि वो लेखन करे या निर्देशन,  मंचीय वक्ता बने या सार्थक विचार गोष्ठी का हिस्सा, उनकी अभिव्यक्ती अन्य सभी को सम्मोहित हो श्रोता या दर्शक बनने को मजबूर कर देती है। यह कल्पना की उन्मुक्त उडान ही “जय हो” जैसा गाना लिखने की प्रेरणा देती है और आस्कर अवार्ड को निर्विवाद रूप से अख्तियार करने का अधिकार । अनेक फिल्मफेयर अवार्ड , ग्रेमी,  दादा साहेब फाल्के,  साहित्य अकादमी,  पद्मभूषण जैसे पुरूस्कार बेशक उनका हौसला बढाते होंगे पर जन जन तक बिखरी उनकी लेखनी और विचार सदियो तक हासिल होने वाला सम्मान है जो आने वाली पीढ़ीयो को प्रेरणा देता रहेगा। ईशवर सौ बरस से ज्यादा की उम्र से नवाजे और सक्रिय रखे ताकि साहित्य और फिल्म उनके योगदान से और अधिक गुलजार रह सके।
– संदीप पांडे



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