साहित्य का ये कैसा दौर – अमित पाठक शाकद्वीपी

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इन दिनों साहित्य ऐसे दौर से हो कर गुजर रहा है जिसमें साहित्यकार केवल और केवल प्रसिद्धि के लिए लालायित हैं। एक दौर था जब पाठक गण अपने प्रिय लेखक, कवि या कवयित्री की कविता ढूंढने के लिए महीनों समय लगा कर सम्बन्धित पत्र पत्रिकाओं में उनके लेख ढूंढते थे। किसी विशेषांक में ही साहित्यिक रचना मिलती थी। सामाचार पत्रों की प्रसिद्धि का यह भी एक महत्व पूर्ण कारण था । पर अब तो ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति ही साहित्यकार बन गया है । लिखने वाले की संख्या अधिक है और पाठक गण कम होते जा रहे हैं। गिने चुने सामाचार पत्रों की जगह अब हर गली में प्रिटिंग प्रेस है जहां से रोज सैकड़ों पत्र पत्रिका जारी किए जा रहे हैं जिनका उद्देश पैसे कमाना है या प्रसिद्धि कमाना या दोनो ही। साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए बस गिनी चुनी संस्थानों में कार्य जारी है शेष सभी लाभ अर्जन पर ही पूरी दृष्टि जमाए कार्य कर रहे हैं उन्हें साहित्य के न तो प्रसिद्धि से कोई खुशी और न साहित्य के पतन पर दुःख अनुभव होता है। हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी सोशल मीडिया माध्यम पर किसी आभासी साहित्यिक पटल का एडमिन बना बैठा है और खुद के लाभ के लिए लोग इक्कठा किए जा रहा है। आपकी रचना कैसी है? , उनके भाव कैसे हैं? , आपकी रचना में कितनी विसंगतियां है? – जैसे प्रश्नों पर कोई विचार नहीं होता। न ही आपकी लेखन कला को परिष्कृत करने के लिए आपके कविता या लेख की विसंगतियों पर आपका ध्यान आकृष्ट कराया जाता है। आप ने दो मिनट में तुक से तुक मिला कर कुछ पंक्तियां लिख दी और किसी ऐसे सामाचार पत्र या संस्था को भेज दिया जिनको स्वयं का अस्तित्व बनाए रखने में ही परेशानी हो रही है , यदी किसी रोज़ उनको रचना न मिले तो उनका ही प्रकाशन ठप न हो पाए। हम और आप ऐसे ही सामाचार पत्रों के पिछे पागल हुए जा रहे। किसी सामाचार पत्र को क्या अधिकार है या क्या सीमाबध्यता हमें यह भी ज्ञात नहीं होता । हम बस अनभिज्ञ होते हुए खुद की प्रसिद्धि के लिए लिख दें रहें और दर्जनों लोगों को ईमेल कर दे रहें ताकि आपकी मेरी रचनाएं बस छप जाएं।
सुबह से शाम तक हम सब नए नए  प्रकाशक, समाचारों पत्रिकाओं के लिए ईमेल ढूंढ कर रचनाएं भेजें जा रहें और फिर सुबह होते ही इस लिए भी चिंतित हैं कि मेरी कौन सी रचना कहां छपी , सम्बन्धित पेपर की कटिंग भी ढूंढ कर हम ही सबको भेज रहें। अर्थात हम ही अपने लिए लेखक, हम ही प्रेषक और हम ही पाठक भी बने बैठे है। दुसरे साथी रचनाकार की रचना हम पढ़ते भी नहीं है और आशा करते हैं कि हमारी रचना सभी लोग पढ़े। कटु है पर सत्य यही है कि हमे बस स्वयं की प्रसिद्धि चाहिए जो किसी भी तरीके से प्राप्त हो जाए। सुधार की तो हम सोचते ही नहीं है। सुधार का अनुभव ही नही महसूस किया तो कार्य क्या करें इस दिशा में। स्वयं से सजग बने और प्रतिष्ठित तथा विस्तृत सामाचार जो विधि संगत हो और सरकार द्वारा भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय (सूचना और प्रसारण मंत्रालय),सूचना भवन, सीजीओ कॉम्लेक्स, लोधी रोड़, नई दिल्ली- 110003 द्वारा पंजीकृत हो और जिन्हे यहां से मूल RNI पंजीकरण संख्या प्राप्त है , ऐसे ही वास्तविक एजेंसी में अपनी रचनाएं भेजिए। पीआरबी अधिनियम, 1867 की धारा 5 स्पष्ट करती है कि भारत में समाचारपत्र इस अधिनियम में यथा निर्धारित नियमों के अनुरूप ही प्रकाशित किए जाएगें, इसके अलावा कोई भी समाचारपत्र प्रकाशित नहीं किया जाएगा। इस अधिनियम की धारा 11ख के तहत प्रकाशक द्वारा प्रकाशित प्रत्येक समाचारपत्र/पत्रिका की एक प्रति प्रेस पंजीयक को सौंपी जानी अनिवार्य है। इस प्रकार, देश में कोई पत्रिका/समाचारपत्र प्रकाशित करने के लिए भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक का कार्यालय में उसका पंजीयन एक आवश्यकता है। भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक का कार्यालय में किसी समाचारपत्र का पंजीयन दूसरों के द्वारा उसके शीर्षक का दुरुपयोग होने से भी बचाता है। 

ISSN संख्या क्या है?

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अंतर्राष्ट्रीय मानक सीरियल नंबर ISSN एक धारावाहिक प्रकाशन की पहचान करने के लिए जारी आठ अंकों का सीरियल नंबर का एक प्रकार है।
ISSN एक विश्वव्यापी पहचान कोड है जिसका उपयोग प्रकाशकों, आपूर्तिकर्ताओं, पुस्तकालयों, सूचना सेवाओं, बार कोडिंग सिस्टम, यूनियन कैटलॉग आदि के लिए किया जाता है, जो पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, समाचार पत्रों, निर्देशिकाओं, विज्ञापनों, विज्ञापनों, वार्षिक रिपोर्ट, मोनोग्राफ श्रृंखला जैसे धारावाहिकों के उद्धरण और पुनर्प्राप्ति के लिए होता है। भारत में इसे राष्ट्रीय विज्ञान पुस्तकालय द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। यह ISSN नंबर विशेष रूप से समान शीर्षक वाले प्रकाशनों के बीच अंतर करने में लाभदायक है। इन नंबरों का उपयोग क्रमबद्ध, सूचीकरण, पुस्तकालय में उधार और सीरियल साहित्य के उपयोग के लिए अन्य प्रथाओं के लिए किया जाता है। जब एक ही सामग्री वाला धारावाहिक एक से अधिक मीडिया प्रकारों में प्रकाशित होता है, तो प्रत्येक मीडिया प्रकार के लिए एक अलग ISSN सौंपा जाता है। उदाहरण के लिए, कई धारावाहिकों को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में प्रकाशित किया जाता है। ISSN प्रणाली इन प्रकारों को ISSN (p- ISSN) और इलेक्ट्रॉनिक ISSN (e-ISSN) के रूप में संदर्भित करती है। एक लेखक के रुप में हम किसी भी प्रकाशक से आईएसएसएन पंजीकरण का नहीं पूछते और गैर विधिक पत्र–पत्रिका या संस्थान में अपनी छवि बिना किसी संकोच के अपनी रचना के साथ भेज देते हैं जिनके कुछ दुष्परिणाम भी हो सकते है। आज के इस रोबोट  युग में आपकी छवि से छेड़ छाड़ कर उसे किसी भी अश्लील रूप में भी बदला जा सकता है और इसके लिए विशेष दक्षता की भी जरूरत नहीं । ऐसे में कुछ भी कही भी भेजने से पहले संस्थान/समूह और वहां से प्रकाशित होने वाली सामाचार पत्रों के लिए RNI पंजीकरण संख्या , पत्रिका या मैगजीन जनरल जो पुनरावृति में अलग अलग क्रम में छपते हैं उनके लिए ISSN संख्या और पुस्तको के प्रकाशन,मुद्रण और ऑनलाइन विक्रय के लिए ISBN संख्या का होना अनिवार्य रूप से आवश्यक है। यदि इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो आपको काफी ज्यादा तक नुकसान हो सकते हैं। आपकी रचना पर आपका अधिकार भी आप नही दर्शा सकते या आपकी छवि के गलत उपयोग भी संभव है। सोचे विचारे तब ही कहीं भी अपनी रचना भेजें ।

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